घूमकर आने के बाद का मैं

12 दिन में मैंने North India के अलग-अलग हिस्सों में घूमने का अनुभव किया। घूमने में बहुत मज़ा आता है, लेकिन इस सफर के बाद मुझे अपने बारे में कुछ नई बातें समझ आईं। ये ब्लॉग उन्हीं बातों का एक छोटा सा हिसाब है।

1. एडवेंचर मेरे लिए नहीं है

पहले लगता था कि मुझे Adventure पसंद है, लेकिन पिछली 2 trips के बाद समझ आया कि adventurous activities मुझे ज़्यादा excite नहीं करतीं। और ऐसा भी नहीं है कि मुझे कुछ miss कर देने का डर (FOMO) होता है। ऐसा नहीं है कि मुझे डर लगता है, लेकिन अब समझ आया कि मुझे बेहद शांत और सुकून भरे trips पर जाना पसंद है।

2. ज़्यादा लोगों के साथ घूमना मुझे पसंद नहीं

Group travel का अपना एक मज़ा होता है। और जब आप social media पर देखते हैं कि पूरी batch एक साथ घूमने जा रही है, तो वो बहुत exciting लगता है। मेरे लिए भी ऐसा ही था। लेकिन घूमने के बाद पता चला कि इतने सारे लोगों के बीच रहकर भी मैं खुद अकेले घूमना ज़्यादा पसंद करता हूँ।

3. मुझे हर दिन नया शहर घूमना पसंद नहीं है

जब मैं 4 जनवरी को Delhi के लिए निकला, तो सोचा था कि पूरे Delhi को अच्छे से explore करूंगा। लेकिन वहां से पता चला कि शाम को किसी और नए शहर जाना होगा। फिर उस नए शहर से किसी और नए शहर। यह जो बार-बार एक जगह से दूसरी जगह जाने की थकान होती है, और उस जगह को ठीक से सुकून के साथ देख भी न पाना, यह मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आया। मुझे बेहद धीमे और आराम से घूमना पसंद है।

4. मुझे लोगों और Architecture के बारे में सोचना पसंद है

मैं हर शहर के buildings और Architecture को देखकर सोचता हूँ – इसे design करते वक्त architect क्या सोच रहा होगा? जो लोग वहां रहते हैं, उनके सपने और struggles कैसे होंगे? मुझे ऐसी चीज़ें सोचना और समझना सबसे interesting लगता है।

जैसे, पहाड़ हमें कितने ज़्यादा fascinating लगते हैं। लेकिन जो लोग वहाँ रोज़ रहते हैं, क्या उनके लिए भी ये उतने ही fascinating होंगे? एक छोटा-सा सामान लाने के लिए उन्हें न जाने कितनी मेहनत करनी पड़ती होगी। ऐसे सवाल मेरे मन में बार-बार आते रहे।

5. Instagram से पहले लोग कैसे घूमते थे?

ये सवाल मेरे मन में बार-बार आता रहा। बर्फ में? पहाड़ों में? मंदिरों के आस-पास और हर जगह। जब Instagram नहीं था, तब लोग कैसे घूमते थे? क्या वे भी सिर्फ अपनी एक अच्छी तस्वीर लेने के लिए घूमते थे?

मैं भी लोगों से अलग नहीं हूँ। मैंने भी शुरुआत के कुछ दिन सिर्फ अपनी तस्वीरें खिंचवाने में बिताए। फिर जब ये सवाल मुझे ज़्यादा सताने लगा, तो मैं अकेला आस-पास की हर चीज़ को देखने लगा। जब भी लगता था कि इस emotion को capture किया जा सकता है, तब उसे अपने phone में कैद कर लेता था।

आखिरी के दिनों में खुद की तस्वीरें खिंचवाना लगभग बंद कर दिया।

अंतिम शब्द:

मैं बहुत खुश हूँ, सफर के पहले के “मैं” और सफर के बाद के “मैं” में इस अंतर को देखकर।

उम्मीद है, आपको मेरा पहला ब्लॉग पसंद आया होगा।

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9 thoughts on “घूमकर आने के बाद का मैं”

  1. Most simple and realistic one.
    The way you have pen down your thoughts is amazing.
    Keep it up!
    Also a very good start to 2025.

    1. It’s beautiful the way you have written everything authentic and sincere makes it wanting to read more! Waiting for more writing 😊.

  2. Ankush Pagarwar

    All blog was really good !
    But the one of the que that people are travelling just for capturing pictures …..was so great ! 👍
    Keep it up 💪 brother 🤝

  3. The details mentioned and the authenticity of this blog…makes it so good! Please keep writing its therapeutic 🥹

  4. Very nice and the way you explained about the short break and relaxation of your life (the trip) it is truly amazing.

  5. Don’t know why, but every interaction with you, every chat with you (kam hue hai par jitne bhi hue hai), every stories by you, every reels, posts,your thoughts, it feels magical, at least it feels magical to me.
    मैं जब भी तुम्हारी लिखाई को पढ़ता हूँ तो ना जाने क्यों एक संतोष की भावना आ जाती है मेरे भीतर, कभी कभी तो दिन भर की मानसिक थकान को दूर करने का काम करती है ये |

    मुझे याद है मै एक बार सौरभ द्ववेदी की एक शुरुति भाषण सुन रहा था “reading in the age of reels” का और वाहा पे वो जिकर करते है एक साथ नदी और पहाड़ सा होने का, की जब आप नदी से व्यक्ति से मिलते है तो आपका बहुत कुछ कहने का मन करता है और जब आप पहाड़ से व्यक्ति से मिलते है तो आपका बहुत कुछ सुनने का मन करता है और कभी कभी आप एक साथ नदी और पहाड़ से व्यक्ति से मिलते है जो गतशील और प्रवाहमान होते है|

    और यह सुन कर मै हर बार नदी और पहाड़ से होने की कल्पना मै खो जाता था की कैसे होते होंगे नदी और पहाड़ से व्यक्ति, पर तुम्हे जानने के बाद मै अब कल्पना मै नही खोता हूँ, क्युकी अब मै जानता हूँ की ऐसे व्यक्ति कैसे होते है|- तुम्हारे जैसे |

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